दुनिया की आबादी में बड़े इजाफे की सदी गुजर गई है। 20वीं सदी में दुनिया की आबादी में तेजी से इजाफा हुआ था। 1901 में वैश्विक जनसंख्या सिर्फ 1.6 अरब ही थी, जो फिलहाल 8 अरब के पार है। लेकिन जनसंख्या विज्ञानियों का अनुमान है कि जनसंख्या बढ़ने का शीर्ष स्तर जल्दी ही आने वाला है और फिर गिरावट का दौर होगा। यह गिरावट का दौर कई देशों में अस्तित्व के संकट जैसा होगा तो कुछ जगहों पर बुजुर्गों की संख्या इतनी बढ़ जाएगी कि स्वास्थ्य समस्याएं चरम पर होंगी। बुजुर्गों की देखभाल के लिए युवाओं की संख्या बहुत कम हो जाएगी।
वॉशिंगटन के इंस्टिट्यूट ऑफ हेल्थ मीट्रिक्स ऐंड इवैलुएशन (IHME) के अनुसार इस सदी के मध्य यानी 2050 तक दुनिया के 75 फीसदी देशों में जन्म दर रिप्लेसमेंट लेवल से कम हो जाएगी। इसका अर्थ हुआ कि कपल दो से भी कम बच्चे पैदा करेंगे। अब भी कई देशों में ऐसे परिवारों की संख्या बढ़ती जा रही है, जो बच्चे ही नहीं पैदा कर रहे हैं या फिर उनके एक ही संतान है। IHME का अनुमान है कि 2050 तक 75 फीसदी देशों में जन्मदर रिप्लेसमेंट लेवल से कम होगी तो वहीं 2100 में यह आंकड़ा 97 फीसदी देशों का रहेगा। यही नहीं एक दिलचस्प अनुमान है कि आज से 75 साल बाद भी नाइजर, टोंगा, सोमालिया और ताजिकिस्तान जैसे देशों में आबादी की दर 2.1 से ज्यादा होगी।
स्टडी में दुनिया भर की सरकारों से अपील की गई है कि वे आबादी की ग्रोथ में अचानक गिरावट को रोकने के लिए कदम उठाएं। आबादी में तेजी से कमी के चलते अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी। एक दिलचस्प अनुमान यह भी है कि अफ्रीकी देशों में सन् 2100 तक दुनिया के आधे बच्चे पैदा होंगे। यानी दुनिया का हर दूसरा बच्चा किसी अफ्रीकी देश में पैदा होगा। वहीं जापान, साउथ कोरिया और रूस जैसे देशों को अपने दरवाजे प्रवासी लोगों के लिए खोलने की सलाह दी गई है। ऐसा इसलिए ताकि वहां आबादी का संतुलन बना रहे। रूस में तो अब भी आबादी का संकट इतना बढ़ गया है कि उसे दूसरे देशों के युवाओं को लुभाकर अपनी सेना में भर्ती करना पड़ रहा है।
बता दें कि संयुक्त राष्ट्र ने भी बीते साल आबादी को लेकर एक अनुमान जाहिर किया था। इसमें भारत की जनसंख्या में 2080 के बाद से गिरावट का अनुमान जताया गया है। यह दिलचस्प है क्योंकि 5 दशक पहले पॉल एरलिच ने एक पुस्तक लिखी थी- The Population Bomb। इस पुस्तक में कहा गया था कि ऐसे ही आबादी बढ़ी तो यह ग्रह भुखमरी का शिकार होगा। आज स्थिति उलट होती जा रही है। कई देशों ने संसाधन तो तमाम तैयार किए हैं, लेकिन अब घटती आबादी का संकट उनके लिए अस्तित्व की चिंता बढ़ा रहा है।
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